-बोरियों में बंद प्रेमचंद- फतेहाबाद जिला पुस्तकालय में हिंदी साहित्य की दुर्दशा जब कोई राष्ट्र अपने साहित्य से मुंह मोड़ लेता है, तो वह केवल किताबें नहीं खोता—वह अपनी आत्मा खो देता है। आज फतेहाबाद जिला पुस्तकालय उस भयावह स्थिति में पहुंच चुका है, जहां न केवल पुस्तकें उपेक्षित हैं, बल्कि समूची सांस्कृतिक चेतना बोरी में बंद पड़ी है। यह वही पुस्तकालय है जिसे ज्ञान, साहित्य और लोक संस्कृति के संरक्षण का केंद्र बनना था। पर हकीकत यह है कि आज वहां प्रेमचंद, शेक्सपियर, महादेवी वर्मा, नागार्जुन, सुमित्रानंदन पंत जैसे मूर्धन्य साहित्यकार बोरियों में धूल फांक रहे हैं। ये केवल किताबें नहीं, हमारी सभ्यता, संघर्ष और संवेदनाओं की जीवित धरोहर हैं। इन बोरियों में बंद हैं-:
गोदान— किसान की पीड़ा और आत्मबलिदान की महागाथा
कफन— गरीबी के दंश की निर्वाक अभिव्यक्ति
ईदगाह — मासूम बचपन की करुणा और संवेदना
इनका यूँ उपेक्षित पड़ा होना मानो हमारी सामूहिक चेतना को दफना देने जैसा है। जिला पुस्तकालय को पहले एक जर्जर भवन में रखा गया, फिर बस स्टैंड के कोलाहल में धकेला गया। पाठकों के विरोध के बाद इसे बाल भवन की एक संकरी जगह में अस्थायी रूप से ठूंसा गया। लेकिन अब आलम यह है कि पुस्तकें और अलमारियाँ—जो समाज की बौद्धिक पूंजी हैं—फिर से बस स्टैंड स्थित एक बंद कमरे में बोरियों में भरकर समेट दी गई हैं। यह मात्र प्रशासनिक लापरवाही नहीं, संस्कृति का अपमान है। बोरियों में सिर्फ हिंदी के महान साहित्यकार ही नहीं हैं, बल्कि हरियाणवी, ब्रज, अवधी, मैथिली, राजस्थानी जैसी लोक भाषाओं की अमूल्य पुस्तकें भी बंद हैं। ये भाषाएं भारत की विविधता और सांस्कृतिक गहराई का प्रमाण हैं। इनकी उपेक्षा, हमारी जड़ों को ही काटने के समान है। नागरिक अधिकार मंच ने पुस्तकालय की दुर्दशा के खिलाफ शुरुआत से ही हर स्तर पर आवाज उठाई है—प्रशासनिक ज्ञापनों से लेकर धरना-प्रदर्शन तक। मंच की स्पष्ट मांग है-:
1. बोरियों में बंद सभी पुस्तकें शीघ्र निकाली जाएं और व्यवस्थित की जाएं।
2. हिंदी साहित्य खंड की स्थापना हो, जिसमें क्षेत्रीय बोलियों को भी उचित स्थान मिले।
3. फतेहाबाद जिला पुस्तकालय को एक पूर्ण सुविधाओं वाला स्थायी भवन मिले, जिसमें अध्ययन, शोध और साहित्यिक विमर्श के लिए अनुकूल वातावरण हो।
4. जब तक स्थायी भवन का निर्माण नहीं होता, इसे पंचायत भवन से अस्थायी रूप से संचालित किया जाए।
5. फतेहाबाद पुस्तकालय को हरियाणा का आदर्श पुस्तकालय बनाने की दिशा में ठोस नीति बनाई जाए।
फतेहाबाद को एक ऐसा पुस्तकालय चाहिए जो सिर्फ किताबों का गोदाम नहीं, बल्कि विचारों का मंच, संवाद का केंद्र और चेतना का संगम हो। आइए, प्रेमचंद को बोरी से बाहर निकालें—और अपने विवेक को भी।
राजीव सेतिया, संयोजक नागरिक अधिकार मंच,
सदस्य , पुस्तकालय संघर्ष समिति
M.No. 98123-44867